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जाने क्यों धूम 3…

Mere Khayal se
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जाने क्यों धूम 3
जाने क्यों धूम 3

धूम 3 मतलब? हम जो भी दिखाएँ देख लो और हर चीज़ का एक ही कारण है – क्योंकि हम ऐसा दिखाना चाहते हैं।

कुछ लोग होते हैं जिनके हाथ लगाने से कोयला भी हीरा बन जाता है, वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके हाथ मे हीरा भी पत्थर हो जाता है। “विजय कृष्ण आचार्य” ऐसा ही एक नाम है। अपनी पहली ही फिल्म में इन्हें अनिल कपूर, सैफ अली खान, अक्षय कुमार, करीना कपूर जैसे सितारे मिले और इन्होने क्या बनाया? ‘टशन’ नामक हादसा। फिर दूसरी ही फिल्म मे इन्हे वो कलाकार मिल गया जिसके साथ काम करने को हर नया निर्देशक बेताब होता है, जिसके पास स्क्रिप्ट्स का अंबार लगा होता है और जो अच्छी फिल्म की गारंटी माना जाता है, यानि “आमिर खान” पर फिर इन्होने गोबर ही किया? ‘धूम 3’…मैंने कहीं पढ़ा था की ‘टशन’ फ्लॉप होने के बाद भी आदित्य चोपड़ा ने आचार्य को धूम 3 की ज़िम्मेदारी सौंपी क्योंकि वो इंसान को सफलता से नहीं प्रतिभा से पहचानते हैं। माफ कीजिये, अगर ऐसा है तो चोपड़ा साहब को प्रतिभा का मतलब नहीं पता है। वैसे भी यश राज बैनर की ज़्यादातर फिल्में सतही और कमजोर होती हैं। व्यावसायिक सफलता, असफलता एक अलग बात है।

मैं वैसे भी धूम श्रंखला का कभी प्रशंसक नहीं था लेकिन चूंकि इस फिल्म में आमिर खान थे तो पूरी उम्मीद थी की कुछ बहुत ही बेहतरीन देखने को मिलेगा। लेकिन जैसा कि हम जानते हैं, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, सो वो नहीं फोड़ पाया। ना निर्माता में क्वालिटी का कोई आग्रह है और ना ही निर्देशक में प्रतिभा बल्कि सही मायने में आमिर को छोडकर सभी दोयम दर्जे के लोग फिल्म से जुड़े हैं। आमिर ने अपना 100% दिया है लेकिन स्क्रिप्ट में ही कुछ नहीं हो तो कलाकार क्या कर सकता है? मृत्युदाता फिल्म को वाहियात होने से अमिताभ बच्चन भी नहीं बचा सके थे।

तो फिल्म के पहले आधे घंटे में ही दिमाग का दही बन गया था और बाकी समय फिल्म उस दही की छाछ बिलौती रही।

कहानी नाम की चीज़ बताने में मुझे शर्म आ रही है फिर भी… एक था इंडियन (ग्रेट) सर्कस पर वो शिकागो (अमेरिका) में था। जाने कैसे तो वो बना और जाने कैसे उस पर बैंक का जाने कितना कर्ज़ हो गया और जाने क्यों बैंक को भरोसा नहीं हुआ कि सर्कस वो कर्ज़ चुका देगा और जाने कैसे बैंक ने उसे नीलाम कर दिया और फिर उसका जाने क्या हुआ। मालिक मर गया पर फिर जाने कैसे उसी बिल्डिंग में उसका बेटा वही सर्कस चलाने लगा और वो उसे जाने कब से चलाने लग गया था हमें तो बाद में पता लगा। फिर उसे सर्कस में जाने क्यों एक डांसर की ज़रूरत थी जिसके audition में जाने क्यों कोई लड़की पास नहीं हो रही थी। फिर जाने क्यों एक लड़की ‘साइकल’ पर आई, वो रोज़ audition देती थी (जाने क्यों) वो साइकल लेकर बिल्डिंग में घुस गई और उसे कोई भी नहीं पकड़ पाया (फिर जाने क्यों) । फिर जाने क्यों रोज़ फ़ेल हो जाने वाली लड़की आज ज़ोर-शोर से पास हो गई…। वो आते ही नाचने लगी और जाने क्यों वो एक के ऊपर एक बहुत सारे कपड़े पहन कर आई थी और जाने क्यों धीरे-धीरे सब उतारती जा रही थी, गाना जब खत्म हुआ तो लोगों को लगा कि जाने क्यों इस गाने में एक और अंतरा नहीं है…। चोर बार-बार चोरी करता था पर जाने कैसे करता था, हमें तो बस वो हमेशा भागता ही दिखाई देता था। और जाने क्यों (और ये सबसे बड़ा ‘जाने क्यों’ है) फिल्म के लेखक को ये लगा की ‘ऐसी की तैसी’ एक बहुत ही भारी और जबर्दस्त संवाद है जो किसी की भी पेशाब छुड़ा सकता है, उसने इसे फिल्म का केंद्रीय संवाद बना दिया। हीरो का बाप यही बोल कर मरा और हीरो भी चोरी करके यही बात लिख कर जाने लगा। इन्हें जाने क्यों किसी ने नहीं बताया की ऐसी की तैसी का असर तो अब आम बोलचाल में भी खो चुका है, ये मज़ाक में कहा जाता है, किसी को डराने के लिए तो बिलकुल नहीं। खैर, हीरो हिन्दी में इतनी सी बात लिखता था पर जाने क्यों बैंक की घिग्घी बांध गई और इसे कोई बड़ी भारी बात समझ कर उन्होने भारत से 2 पोलिसवाले बुला लिए । भैया, इतने भारतीय रहते हैं अमेरिका में किसी से भी अनुवाद करवा लेते, पर जाने क्यों नहीं करवाया। और बुलाया भी तो उदय चोपड़ा को बुलाया? सच में दुनिया खत्म होने वाली है। खैर, तो वही जबर्दस्ती वाली कहानी है, जाने क्यों ये दोनों आते हैं, जाने क्यों सफल नहीं हो पाते हैं। फिर जाने क्यों बैंक का इन पर से भरोसा उठ जाता है और इन्हें वापस जाने को कह दिया जाता है पर जाने क्यों ये वापस नहीं जाते और फिर “जाने क्यों और कब?????” इन्हें वापस केस दे दिया जाता है। जाने क्यों बहुत कुछ होता है लेकिन किसी चीज़ का कहीं सिरा नहीं मिलता। जाने क्यों फिल्म का हर किरदार उड़ते हुए एंट्री मारना चाहता है। हीरोइन को जाने किस्से प्यार होता है और जाने क्यों और फिर उस प्यार का जाने क्यों कुछ नहीं होता। बहुत से जाने क्यों हैं, जाने दीजिये वरना आप कनफ्यूज़ हो जाएँगे।

कहानी इतनी ही, अब थोड़ी तकनीक की बात। आज जब ज़माना तकनीक के क्षेत्र में इतना आगे बढ़ गया है तब भी जाने क्यों इन्होने सबसे सस्ता VFX आर्टिस्ट लिया, नतीजा सब कुछ नकली दिखाई दे रहा था। बैक्ग्राउण्ड और फोरग्राउंड साफ अलग नज़र आ रहे थे। फिल्म के sequences में कोई connectivity नहीं है। रीज़निंग पूरी तरह गायब है। संवाद बेहद कमजोर हैं और संगीत की तो बात ही ना करें वरना खून खौल जाएगा मेरा। धूम 2 में कम से कम चोरी करने के दृश्य बहुत अच्छे बनाए थे, मेहनत की थी लिखने वाले ने, यहाँ तो लिखनेवाला बहुत ही कामचोर था बल्कि मैं कहूँगा की लेखन फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है। धूम 2 का ओपेनिंग दृश्य ही इस पूरी फिल्म पर भारी है।

फिर एक बार वही बात साबित होती है की फिल्म पूरी तरह निर्देशक का माध्यम है, अगर निर्देशक नालायक है तो अच्छे से अच्छा कलाकार उसे नहीं बचा सकता। अंत में जाने क्यों ऐसी फिल्में बनती हैं ये तो नहीं कहूँगा क्योंकि ऐसी फिल्में 100 करोड़ कमा लेती हैं पर जाने क्यों ये फिल्में 100 करोड़ कमा लेती हैं?

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